असुरक्षित नारी - इज़्ज़त का प्रश्न

Poet: Yash Tiwari
आस ना तू जोड़ कलयुग है ये घनघोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
वासना से तृप्त धरती कौन यहाँ सच्चा है
गैरों की अब क्या ही कहाँ अपना ही ना कोई अच्छा है
खुद बचा सम्मान अपना मत मचा अब शोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
सत्ताधारी पुतले बने न्याय अंधा हो गया
भ्रष्टता से इस कदर कानून गंदा हो गया
बन सहारा आएगा ये आस दे अब छोड़
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
आस में बैठे रहेंगे राम न यहाँ आएंगे
ना आके पांडव यहाँ महाभारत रचाएंगे
अंधेरा न छिप पाएगा ना हो पाएगी भोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
पल पल सच्चाई जलती रहेगी सराफ़त विश्वास की
हम सोचते रह जाएंगे दरिंदों के विनाश की
जौहर में रहेगी जलती कोई देखेगा ना तेरी ओर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
बहरी अदालत न यहाँ चीखें तेरी सुन पाएगा
मर भी जाएगी तो फिर भी न्याय ना दिलवाएगा
हाथ जो तुझपे उठे अब खुद तू उनको तोड़
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
वासना से तृप्त धरती कौन यहाँ सच्चा है
गैरों की अब क्या ही कहाँ अपना ही ना कोई अच्छा है
खुद बचा सम्मान अपना मत मचा अब शोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
सत्ताधारी पुतले बने न्याय अंधा हो गया
भ्रष्टता से इस कदर कानून गंदा हो गया
बन सहारा आएगा ये आस दे अब छोड़
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
आस में बैठे रहेंगे राम न यहाँ आएंगे
ना आके पांडव यहाँ महाभारत रचाएंगे
अंधेरा न छिप पाएगा ना हो पाएगी भोर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
पल पल सच्चाई जलती रहेगी सराफ़त विश्वास की
हम सोचते रह जाएंगे दरिंदों के विनाश की
जौहर में रहेगी जलती कोई देखेगा ना तेरी ओर
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर
बहरी अदालत न यहाँ चीखें तेरी सुन पाएगा
मर भी जाएगी तो फिर भी न्याय ना दिलवाएगा
हाथ जो तुझपे उठे अब खुद तू उनको तोड़
इज़्ज़त बचाने ना कोई आएगा माखन चोर